नई नई जानकारियाँ जो आपको बताएगा कि आप अपने शरीर को कैसे स्वस्थ रखे और कैसे अपने को बीमारियों से बचाए तथा बीमारियों से बचने के लिए क्या क्या उपाय कर सकते है।
Tuesday, March 24, 2020
शरीर रहे स्वस्थ : डाइबिटीज बीमारी की जाँच से ही सही इलाज संभव है। जा...
शरीर रहे स्वस्थ : डाइबिटीज बीमारी की जाँच से ही सही इलाज संभव है। जा...: डाइबिटीज बीमारी की जाँच से ही सही इलाज संभव है। जाने क्यों होती है ये बीमारी और कौन से टेस्ट आवश्यक है। आजकल भागदौड़ भरी जिंदगी में गलत ख...
डाइबिटीज बीमारी की जाँच से ही सही इलाज संभव है। जाने क्यों होती है ये बीमारी और कौन से टेस्ट आवश्यक है
डाइबिटीज बीमारी की जाँच से ही सही इलाज संभव है। जाने क्यों होती है ये बीमारी और कौन से टेस्ट आवश्यक है।
आजकल भागदौड़ भरी जिंदगी में गलत खान पान और गलत जीवन शैली के कारण एक बीमारी लोगों को घुन की तरह खा रही है वो है डाइबिटीज। डाइबिटीज को धीमी मौत भी कहा जाता है।क्या है डाइबिटीज ------ डायबिटीज एक तरह का शारीरिक विकार जो की अनेक प्रकार की बिमारियों का कारण है जिसमे जब शरीर की पैंक्रियास में इन्सुलिन जब कम मात्रा में पहुँचता है जिसके कारण खून में ग्लूकोज़ ज्यादा मात्रा में बढ़ जाता है। जिसके कारण शरीर सही प्रकार से भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित नहीं कर पाता है और ग्लूकोज़ की बढ़ी मात्रा शरीर को नुकसान पहुंचाने लगती है। इन्सुलिन एक प्रकार का हार्मोन होता है जो शरीर के पाचक ग्रंथि से बनता है जिसका काम भोजन को ऊर्जा में बदलना होता है। इन्सुलिन हार्मोन द्वारा ही शरीर में शुगर का स्तर सही रहता है। यदि डाइबिटीज का इलाज सही समय पर नहीं किया तो ये जानलेवा भी हो सकती है।
डाइबिटीज तीन प्रकार की होती है पहली टाइप 1 दूसरी टाइप 2 डाइबिटीज तीसरी प्रीडायबिटीज ।
टाइप 1 डाइबिटीज में पैंक्रियाज में इन्सुलिन हार्मोन बनना बंद हो जाता है जिसके कारण खून में गुलकोज़ की मात्रा बढ़ जाती है। इसका कारण आनुवंशिकता है। ये बच्चों को जन्म के समय से भी हो सकती है। इस बीमारी में इन्सुलिन को इंजेक्शन से शरीर में इन्सुलिन हार्मोन को डाला जाता है।
टाइप 2 डाइबिटीज में पैंक्रियाज में जरुरत के हिसाब से इन्सुलिन नहीं बन पाता है या इन्सुलिन हार्मोन ठीक से काम नहीं करता है। इस बीमारी में इन्सुलिन हार्मोन को नियंत्रित करने के लिए दवाओं और जीवनशैली में परिवर्तन से कण्ट्रोल किया जाता है।
प्रीडायबिटीज में खून में शुगर की मात्रा लगभग खतरे के निशान के लगभग होती है इसे बॉडर लाइन डाइबिटीज भी कहते है। यदि समय रहते इस बीमारी का पता चल जाये तो इस बीमारी को कण्ट्रोल करना आसान होता है और डाइबिटीज के दुष्परिणामों से बच सकते है।
क्या कारण होता ही डायबिटीज होने का ?------ डायबिटीज होने की दो कारण होते है पहला जिसका कारण असंतुलित खानपान , गलत जीवन शैली ,मोटापा ,तनाव, और व्यायाम न करना दूसरा अनुवांशिक कारण यदि परिवार की हिस्ट्री में किसकी को डाइबिटीज थी तो आनेवाली में डायबिटीज होने की आशंका हो सकती है।
डायबिटीज के लक्षण ------ ज्यादा प्यास लगना।
बार पेशाब आना।
किसी भी जख़्म का देर से भरना।
शरीर में संक्रमण बढ़ना और जल्दी से ठीक नहीं होना।
आंखों की रोशनी का कम होना।
शरीर का वजन तेजी से कम होना।
गुप्तांगों पर खुजली वाले ज़ख्म।
बार शरीर पर फोडेफुंसियां निकलना।
चक्कर आना
चिड़चिड़ापन
ज्यादा थकान होना
ज्यादा भूख लगना
हाथ पैर का सुन होना
डाइबिटीज के लिए कुछ आवश्यक ब्लड टेस्ट जिनको करवाने से इस बीमारी की स्थिति का पता चलता है।
फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज़ टेस्ट ------ इस टेस्ट को करवाने के लिए कम से कम 8 घंटे तक कुछ न खाया हो यानि आप भूखे पेट हो। ये टेस्ट सुबह के समय नाश्ते से पहले किया जाता है। इससे आपको पता चलता है कि आपकी शुगर किस लेवल पर है। ये टेस्ट डाइबिटीज और प्रीडायबिटीज का पता लगाने के लिए सबसे सटीक टेस्ट है। ये सबसे सस्ता और सुविधाजनक टेस्ट है।
पोस्ट प्रेडियल ब्लड शुगर टेस्ट ---- इस टेस्ट को नाश्ते के दो घंटे के बाद किया जाता है।इस टेस्ट में खाने की बाद शरीर में भोजन का ऊर्जा में बदलने के बाद शुगर के स्तर का टेस्ट किया जाता है।
ओरल ग्लूकोज़ टॉलरेंस टेस्ट ------ इस टेस्ट से पता चलता है की फास्टिंग की बाद यदि ग्लूकोज़ दिया जाये तो शरीर इस ग्लूकोज़ को कितना इस्तेमाल करता है और इसपर शरीर की प्रक्रिया क्या रहती है। इस टेस्ट में पहले खाली पेट टेस्ट होता है फिर मीठा खाने या ग्लूकोज़ (75 ग्राम ) को पिलाकर कर दो घंटे के बाद ब्लड टेस्ट किया जाता है। इस टेस्ट को करवाने के लिए 8 से 10 घंटे कुछ नहीं खाना होता है।
रैंडम प्लाज्मा टेस्ट ------ इस टेस्ट को कभी भी करवाया जा सकता है इसमें भूखे रहने या खाने पीने की कोई पाबंदी नहीं होती है। इसमें शरीर में भोजन का ऊर्जा में बदलने के बाद शुगर का टेस्ट होता है।
एचबीए1सी टेस्ट -------- इसे ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन या A 1 सी टेस्ट भी कहा जाता है। ये डायबिटीज का पता लगाने का सबसे बढ़िया टेस्ट है। ये रक्त में हीमोग्लोबिन और लाल रक्तकोशिकाओं से जुड़े ग्लूकोज़ की मात्रा को नापता है। ग्लूकोज़ इससे पिछले तीन महीने के शुगर के स्तर का पता चलता है यदि इसका लेवल ज्यादा हो तो डाइबिटीज से जुडी परेशानियों से खतरा बढ़ जाता है। इस टेस्ट से दिल और नसों की परेशानियों का पता चलता है। ये असंतुलित लिपिड प्रोफइल जिसमे ज्यादा कोलेस्टॉल ,ख़राब एलडीएल,अच्छे कोलेस्ट्रॉल एचडीएल की जानकारी देता है।
फ्रूक्टोजामाइन टेस्ट ------ फ्रूक्टोजामाइन टेस्ट यानि ग्लाइकेटेड सीरम प्रोटीन या ग्लाइकेटेड एल्ब्यूमिन टेस्ट में दो तीन हफ्ते का शुगर टेस्ट होता है जिसमे ब्लड में शुगर के साथ प्रोटीन मिलने से एफ ए बनता है एफए का स्तर बढ़ने से ब्लड में शुगर का लेवल बढ़ता है। इस टेस्ट से ब्लड में शुगर में बदलाव का पता चलता है जिससे इस बदलाव को पहचान कर इलाज शुरू किया जा सकता है।
डाइबिटीज से कैसे बचा जाए ? डाइबिटीज से बचने के लिए कई बातों का ध्यान रखना चाहिए।
तनाव मुक्त रहे।
स्वस्थ जीवनशैली अपनाये यानि संतुलित भोजन और सही समय अंतराल पर।
व्यायाम करना।
मीठी चीजों ,फ़ास्ट फ़ूड और मैदा की बनी चीजों से परहेज करे।
शारीरिक श्रम करना।
खाने में फाइबर के मात्रा ज्यादा लेना।
Monday, March 23, 2020
शरीर रहे स्वस्थ : हड्डियों के दर्द को हलके से न ले , ये समस्या आपके ...
शरीर रहे स्वस्थ : हड्डियों के दर्द को हलके से न ले , ये समस्या आपके ...: हड्डियों के दर्द को हलके से न ले , ये समस्या आपके लिए गंभीर हो सकती है। हड्डियों में दर्द की समस्या पहले केवल अधिक उम्र के लोगो को तो ह...
हड्डियों के दर्द को हलके से न ले , ये समस्या आपके लिए गंभीर हो सकती है।
हड्डियों के दर्द को हलके से न ले , ये समस्या आपके लिए गंभीर हो सकती है।
हड्डियों में दर्द की समस्या पहले केवल अधिक उम्र के लोगो को तो होती थी पर आजकल युवाओं में भी हड्डियों के दर्द की समस्या देखी जा रही है। पुरुषों के तुलना में महिलाओं में हड्डियों के दर्द की ज्यादा समस्या देखने को मिलती है। हड्डियों में दर्द मांसपेशियों के दर्द से अलग होता है। हड्डियों का दर्द लगातार होता रहता है जबकि मांसपेशियों का दर्द कुछ समय के बाद ख़तम हो जाता है। हड्डियों के दर्द के वजह उन बिमारियों को माना जाता है जो हड्डियों को प्रभावित करती है।लक्षण क्या होते है हड्डियों में दर्द के ----- जब चलने ,खड़ा होने पर यहाँ तक की आराम करते समय भी दर्द हो इसका कारण सूजन , हड्डी पर चोट या जख्म हो सकता है।
सूजन और क्रेपिटस -- जोड़ों के हिलने डुलने से कट कट जो आवाज आते है उसे क्रेपिटस कहते है इसका कारण हमारे जोड़ो में जो लिक्विड होता है उसमे हवा के बुलबुले फूटने के कारण एक तरह की आवाज पैदा होती है। कई बार ये आवाज मांसपेशियों के टेंडन या लिगामेंट्स के रगड़ से भी होती है जो एक आम बात है। यदि जोड़ों में अकड़न आधे घंटे से ज्यादा हो या सूजन हो तो डॉक्टर को दिखाना जरुरी हो जाता है।
चलते समय जोड़ों का जाम हो जाना ---- इसमें हड्डियों में रक्त की आपूर्ति में अवरोध होता है जिसके कारण अचानक चलते समय जोड़ जाम हो जाते है।
जोड़ो में कड़कपन ---- जब हड्डियों में कैल्शियम फास्फोरस विटमिन डी के कमी हो जाती है तब हड्डियों में कड़कपन आ जाता है।
विटामिन डी का कम होना ---- विटामिन डी कमी से शरीर में कैल्शियम अवशोषित नहीं हो पता है जिसके कारण शरीर की हड्डियों में कमजोरी आ जाती है।
बुखार या कोई संक्रमण में दर्द ----- कई बार शरीर में बुखार या अन्य प्रकार के संक्रमण होने के कारण भी हड्डियों में दर्द हो सकता है। कभी कभी हड्डियों के कैंसर में भी इस तरह के लक्षण हो सकते है।
हड्डियों के दर्द के कारण ------इसमें चोट लगाना या जख्म जो ऊपर से नजर आता है के कारण दर्द हो सकता है।
फ्रैक्चर ---- हड्डी का टूटना या फ्रैक्चर होने से हड्डी में असहनीय दर्द होता है।
हड्डी में टीबी होना।
ल्यूकेमिया---- ये एक तरह का ब्लड कैंसर होता है। इसमें अचानक वजन गिरना और कमजोरी आती है।
ऑस्टियोपोरोसिस ------- जब शरीर में कैल्शियम , मैग्नीशियम , विटामिन डी ,आदि खनिज पदार्थों की कमी हो जाती है तो हड्डियां कमजोर हो जाती है इससे हड्डियों का टूटने का भुरभुरा और टूटने का डर रहता है। आस्टियोपोरोसिस में शरीर की किसी भी हड्डी में अचानक दर्द होने लगता है।
विटामिन और कैल्शियम की कमी ---- विटामिन और कैल्शियम की कमी से हड्डियों का विकास सही तरीके से नहीं हो पाता है और ये कमी हड्डियों को कमजोर बनती है जिसे हड्डियाँ पतली हो जाती है।
कैल्शियम की अधिकता ----- कैल्शियम हड्डियों की मजबूती के लिए आवश्यक होता है परन्तु इसकी अधिकता यानि जब कैल्शियम की ज्यादा मात्रा शरीर के फास्फेट के साथ मिलकर एक केमिकल बनती है जो हड्डियों को भुरभुरा बनती है जिसके कारण हड्डियाँ कमजोर होकर टूटने लगती है। ज्यादा मात्रा में कैल्शियम से शरीर में मैग्नीशियम के कमी हो जाती है जो हड्डियों की सेहत के लिए हानिकारक है।
आवश्यक मिनरल की कमी होना --- हड्डियों की सेहत के लिए विटामिन सी ,विटामिन डी , विटामिन इ बहुत जरुरी होता है यदि शरीर में इनकी कमी हो जाये तो हड्डियों की सेहत बिगड़ने लगती है। ये हड्डियां में दर्द और कमजोरी का कारण हो सकता है।
रूमेटाइड आर्थराइटिस ----- ये हड्डियों की एक बीमारी है जिसमे हड्डियों में जलन ,सूजन ओर दर्द होता है। इसमें हड्डियों के जॉइंट्स का आकार बदलने लगता है , हड्डियों में टेढ़ापन आ जाता है।
पेजेट रोग ----- हड्डियों का ये रोग किसी भी आयु में हो सकता है। इसमें अचानक हड्डियों में दर्द होने लगता है इसका कोई खास कारण सामने नहीं आया है। इसमे हड्डियों में सुन्नपन या सिरहन सी होती है इसमें बड़ी हड्डी के नजदीकी वाली नसों में दर्द होता है। कूल्हा या घुटने में दर्द और अकड़न के साथ व्यक्ति लंगड़ाकर चलता है।
प्रोटीन सप्लीमेंट ज्यादा लेने से ----- आजकल के युवा अपनी बॉडी बनने के लिए प्रोटीन सप्लीमेंट लेते है कुछ तरह के प्रोटीन सप्लीमेंट में स्टेरॉइड होता है जिसकी अधिकता से नसे सुकुड़ जाती है और बोन टिशू को नुकसान होता है जिसके कारण हड्डियां कमजोर हो जाती है।
व्यायाम ------ जब ज्यादा व्यायाम किया जाता है जिसके कारण हड्डियों और जोड़ों में खिचाव और दर्द हो सकता है। जुम्बा और एरोबिक्स आदि व्यायाम आदि बिना ट्रेनर के किया जाये तो ये भी हड्डियों और मांसपेशियों की परेशानी का कारण बन सकता है।
प्रदूषण ---- हड्डियों को कमजोर करने का एक कारण प्रदूषण भी है। प्रदूषण खून में विकार पैदा करते है जिसके कारण शरीर में पोषक तत्व की कमी हो जाती है जो हड्डियों की कमजोरी और दर्द का कारण हो सकती है।
हड्डियों के दर्द का इलाज --- हड्डियों के दर्द के इलाज के लिए डॉक्टर कुछ जांच कराता है जिससे हड्डियों के दर्द का कारण पता चलता है ये टेस्ट करवाने होते है
ब्लड टेस्ट (सीबीसी , ब्लड डिफरेंशियल )
हड्डियों और जोड़ों का एक्सरे और स्कैन
हड्डियों का सीटी और एमआरआई स्कैन
लेवल और हार्मोन्स
यूरिन टेस्ट
पिट्यूटरी और एड्रिनल
हड्डियों के दर्द का इलाज ------ शुरू में डॉक्टर बिना जाँच किया दर्द निवारक दवाएँ और एंटीबायोटिक दवाएँ देते है जिसे दर्द में आराम मिलता है तथा संक्रमण के कीटाणु ख़त्म होते है।
शरीर में पोषक तत्वों की कमी दूर करने के लिए विटमिन डी ,कैल्शियम ,मिनरल की दवाएं और सप्लीमेंट्स दिया जाता है ताकि यदि शरीर में इनकी कमी हो तो पूरी हो जाये।
यदि जांचों में हार्मोन्स संबंधी कोई परेशानी हो तो डॉक्टर उस हार्मोन्स का स्तर को सही करने की दवाएँ देते है।
कुछ व्यायाम द्वारा हड्डियों और जोड़ों में गतिशीलता बढ़ती है दर्द कम तो होता है ही साथ में कड़ी मांसपेशियों में लचीलापन आता है जिससे दर्द में आराम मिलता है। फिजियोथेरेपी और अलग अलग तरह की सिकाई से दर्द में राहत दी जाती है।
कुछ मामलों में जैसे कैंसर या हड्डियों में इन्फेक्शन वाला भाग को सर्जरी से निकला जाता है। गंभीर रोगों में जोड़ों को सर्जरी द्वारा बदला भी जाता है। घुटनों में यदि घिसावट या अन्य प्रकार का क्रेक है तो सर्जरी से घुटना बदला जा सकता है।
Monday, March 16, 2020
लिपिड प्रोफाइल टेस्ट की जरूरत क्यों पड़ती है क्या आप को पता है ?
लिपिड प्रोफाइल टेस्ट की जरूरत क्यों पड़ती है क्या आप को पता है ?
लिपिड प्रोफइल टेस्ट क्या है ? लिपिड एक तरह का वसायुक्त पदार्थ है जो हमारे शरीर में कोलेस्ट्रॉल के रूप में होता है। आसान भाषा में कहा जाये तो ये टेस्ट हमारे शरीर में अच्छे एचडीएल और बुरे एलडीएल कोलेस्ट्रॉल का लेवल जांचना होता है। लिपिड प्रोफइल टेस्ट में पांच तरह के टेस्ट होते है जिसे शरीर में टोटल कोलेस्ट्रॉल ,हाई डेन्सिटी लेप्रोप्रोटीन(HDL) ,लो डेन्सिटी लेप्रोप्रोटीन(LDL) वैरी लो डेन्सिटी लेप्रोप्रोटीन (VLDL), ट्राईगिल्सराइड की जाँच होती है। लिपिड प्रोफइल टेस्ट कब करवाना चाहिए ? ------ लिपिड प्रोफइल टेस्ट करवाने के लिए आज की जीवन शैली को देख कर ये नहीं कहा जा सकता है की किस उम्र में करवाना चाहिए। फिर भी 35 साल की आयु के बाद साल में एक बार इस टेस्ट को करवाना चाहिए।
क्यों आवश्यकता होती है लिपिड प्रोफइल टेस्ट की ? ----- यदि आपके परिवार में किसी को दिल की बीमारी या हाई कोलेस्ट्रॉल से पीड़ित हो।
जिनके शरीर का वजन ज्यादा हो।
जो लोग ज्यादा शराब या धूर्मपान करते है।
जिन लोगों का गलत लाइफस्टाइल या गलत खानपान हो।
जो व्यक्ति डाइबिटीज से पीड़ित हो
जिनको किडनी की बीमारी हो
वो स्त्रियाँ जिनका मेनोपॉज हुआ हो।
जिन लोगों का उच्च रक्तचाप रहता हो।
वो स्त्रियाँ जो पोलिसिस्टिक ओवेरी सिंडोरम से पीड़ित हो।
इन स्वास्थ्य परेशानियों में शरीर में कोलेस्ट्रॉल बढ़ने का खतरा काफी बढ़ सकता है इसलिए लिपिड प्रोफाइल के जांच करवाने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर का पता चलता है यदि कोलेस्ट्रॉल ज्यादा हो तो दवाओं और अच्छी स्वस्थ जीवनशैली और सही खानपान से बढ़ते कोलेस्ट्रॉल को कम किया जा सकता है ताकि ह्रदय रोगों के खतरे से बचा जा सके।
लिपिड प्रोफइल टेस्ट कैसे करवाना चाहिए ?--- लिपिड प्रोफइल टेस्ट खाली पेट करवाना चाहिए। इस टेस्ट को करवाने के लिए 9 से 12 घंटे तक कुछ खाना या पीना चाहिए। सबसे अच्छा है की रात 8 बजे तक खाना का कर सो जाये और सुबह 8 बजे तक इस टेस्ट करवाने के लिए ब्लड सेम्पल दे।
क्या स्तर होना चाहिए स्वस्थ व्यक्ति का ? स्वस्थ व्यक्ति का एलडीएल 70 से 130 मिलीग्राम होना चाहिए ये जितना कम होगा शरीर के लिए उतना ही अच्छा है।
एचडीएल 40 से 60 मिलीग्राम ये जितना ज्यादा हो उतना ही अच्छा होता है।
कुल कोलेस्ट्रॉल 200 मिलीग्राम ये जितना कम हो उतना अच्छा माना जाता है।
ट्राईगिल्सराइड 10 से 150 मिलीग्राम ये जितना कम हो उतना ही अच्छा है।
Saturday, March 14, 2020
सही नहीं है महिलाओं को पीरियड्स की समस्याओं में अनदेखा करना।
सही नहीं है महिलाओं को पीरियड्स की समस्याओं में अनदेखा करना।
महिलाओं को पीरियड होना एक सामान्य प्रक्रिया है,जो किशोरावस्था लगभग 12 वर्ष से शुरू होती है और ये प्रक्रिया 40 वर्ष से 50 वर्ष तक रहती है। यदि ये प्रक्रिया जब अनियमित हो जाती है , तो ये समस्या बीमारी का रूप भी ले लेती है और कभी कभी ये बीमारी इतनी गंभीर हो जाती है की जान भी चली जाती है। पीरियड सब महिलाओं को एक जैसे नहीं होते है और ये किसी फिक्स टाइम पर नहीं होते है। ये पीरियड 21 से 35 दिनों के अंदर होता है। आमतौर पर ये 5 दिन तक चलता है। जब पीरियड अपना मासिक चक्र पूरा करने के बाद भी न हो या 15 दिन या 1 -2 महीने के अंतराल पर हो तो इसे अनियमित पीरियड कहते है।
पीरियड का अनियमियता का क्या कारण होता है ? अनियमित पीरियड में ब्लीडिंग ज्यादा होती है। देर से पीरियड होना या पीरियड जल्दी जल्दी होने के दौरान ब्लीडिंग कम या ज्यादा होने की समस्या शुरू होने लगती है। कई महिलाओं में मिस्ड पीरियड लगातार एक चक्र में दो बार होने की समस्या होने लगती है।
अनियमित पीरियड कितनी प्रकार के होते है ? ---- अनियमित पीरियड चार तरह के होते है।
ओलिगोमेनोरिया : इस में पीरियड बहुत कम होता है और पीरियड का चक्र 35 दिन या इससे भी ज्यादा बढ़ जाता है। इसमें साल में सिर्फ 6 से 8 बार ही पीरियड होते है।
मेटोरइया ---- इस समस्या में पीरियड अनियमित होते है जल्दी जल्दी और लगातार होते रहते है।
मेनोमेट्रोराइया ---- इस समस्या में पीरियडस लम्बे समय तक और हैवी होते है। , अनियमित पर जल्दी जल्दी होता है।
एमेनोरिया --- इस में पीरियड 3 -6 महीने में या इस से भी अधिक अंतराल तक नहीं होते है।
पीरियड अनियमित होने का क्या कारण होता है ? ---- पीरियड अनियमित होने के कई कारण होते है जैसे गर्भाशय की समस्या , फाइब्रॉइडस , हार्मोनल समस्या, ओवेरेक्टिव थायराइड , किसी भी प्रकार का संक्रमण , पोलिसिस्टिक ,ओविरेरियन सिंड्रोम ,आदि कारण होते है। युवा लड़कियों का वजन अधिक हो या लम्बे समय से तनाव हो या पीसीओएस के कारण भी पीरियड अनियमित होते है।
महिलाओं में पीरियड अनियमित होने की समस्याओं के ये भी कारण हो सकते है
तनाव --- तनाव के कारण पीरियड अनियमित होना आम कारण है। ज्यादातर युवा लड़कियाँ पढाई ,कैरियर आदि कई बातों का तनाव रहता है। इसका मुख्य कारण थकान ,चिंता आदि है इससे महिलाओं में हार्मोन्स असंतुलित हो जाते है जिससे मिस्ड पीरियड आदि समस्या से गुजरना पड़ता है।
एक्सरसाइज ज्यादा करना ----- यदि महिलाएं अपनी शरीरिक क्षमता से अधिक एक्सरसाइज करती है तो पीरियड में अनियमितता हो सकती है। इसमें पीरियड कम होंगे और धीरे धीरे बंद हो सकते है।
मेनोपॉज ---- इस के होने से हार्मोन्स लेवल में बदलाव आता है जिसके कारण अनियमित पीरियड के द्वारा ये बताता है की अब मेनोपॉज का समय आ गया है।
खानपान --- असंतुलित खानपान शरीर का वजन कम करना या मोटापा भी हार्मोस को प्रभावित करता है।
गर्भनिर्धक दवा का सेवन ---- कभी कभी गर्भनिरोधक दवा से भी पीरियड में अनियमिता आ सकती है। प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन गर्भ नियंत्रण करने वाले हार्मोनल तरिके भी पीरियड को रोकने के लिए जिम्मेवार होते है।
अनियमित पीरियड का इलाज ----- यदि अनियमित पीरियड 6 महीने से अधिक हो रहा है तो इसका इलाज करवाना चाहिए। कुछ कुछ केस में पीरियड अपने आप ही नियमित हो जाते है यदि नियमित नहीं हो रहे है तो इसका इलाज करवाए। हालाकि युवावस्था या मेनोपॉज में किसी खास तरह के इलाज के आवश्यकता नहीं पड़ती है। लेकिन यदि पीसीओएस ,हाइपरथाइराइडिज्म ,फाइब्रॉइड्स ,गर्भाशय की समस्या या संक्रमण हो तो इलाज करवाना चाहिए।
पोलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम ----- सामान्य रूप से इसके इलाज का उद्देश्य शरीर में हार्मोन्स के संतुलन को बनाये रखना होता है इसलिए जिन्हे पीसीओएस की शिकायत है उन्हें गर्भनिरोधक गोली या हार्मोन्स दिए जाते है। दूसरी तरफ ओवरसेक्टव थायराइड की दवा के जरिए जो शरीर के द्वारा निर्मित हार्मोन्स थायराइड हार्मोन्स की मात्रा कम करती है इसका इलाज सम्भव है
जीवन शैली में बदलाव ला केर ---- पीरियड को रेगलर करने के लिए घूमने जाये , खुश रहे , वजन ज्यादा न बढ़ने दे , अपना खानपान अच्छा रखे।
एंडोमिट्रियोसिस एक महिलाओं की दर्दनाक बीमारी इसका सही इलाज और सही जानकारी जरुरी है।
एंडोमिट्रियोसिस एक महिलाओं की दर्दनाक बीमारी इसका सही इलाज और सही जानकारी जरुरी है।
एंडोमिट्रियोसिस एक ऐसी बीमारी है जो महिलाओं मासिक धर्म में असहनीय दर्द और पीड़ा देती है। इस बीमारी का असर महिलाओं को मन और तन दोनों पर पड़ता है। महिलाओं में आजकल ये बीमारी बड़ी तेजी से बढ़ रही है जिसका कारण बदलता पर्यावरण ,मिलावट वाली खाने के चीजे , यूरिया का ज्यादा इस्तेमाल होना आदि। अधिकतर महिलायें इस बीमारी के बारे में कम जानती है। उन्हें पता नहीं होता की एंडोमिट्रियोसिस क्या है ?इसका क्या इलाज है ?
25 -30 साल की महिलाओं में पेट दर्द की शिकायत और कंसीव न करने का एक आम कारण है एंडोमिट्रियोसिस। एंडोमिट्रियोसिस गर्भाशय के आसपास के टिशू (एण्डोमीट्रियम इसका कार्य अंडे का निर्माण करना या गर्भ को पोषण देना है। जब गर्भ नहीं होता है तो ये परत टूट कर मासिक धर्म के रूप में शरीर से बाहर आ जाती है )की ग्रोथ सही तरीके से नहीं होती। इससे महिलाओं को जब भी मासिक धर्म होता है तब टिशू के अंदर की तरफ ब्लीडिंग होती है इससे ब्लड ओवरी में जम जाता है इसे ही एंडोमीट्रोयोसिस सिस्ट या चॉकलेट सिस्ट कहते है। इसमें शरीर की श्रोणी वाले हिस्से में ब्लड के क्लॉट बनने लगते है। इस कारण ओवेरी ,आंते ,और टूब्स आपस में चिपकने लगती है। इससे उन अंगों का नुकसान होता है जिससे बहुत पीड़ा होती है।
क्या होता है इस बीमारी का इलाज ? ----- इस बीमारी का इलाज इस बात पर निर्भर करता है की बीमारी कितनी कितनी पुरानी है। फिर दवाओं द्वारा उभरे हुए टिशूस को दबाने की कोशिश करते है जससे उनका प्रभाव कम हो जाये। गर्भनिरोधक गोलियों और प्रोजेस्ट्रोन गोलियों से इनका इलाज किया जाता है। इन दवाओं से एंडोमिट्रिअल टिशू और ओवरी के अंदर के टिशू पर असर पड़ता है जिसके कारण मासिकधर्म अस्थाई रूप से बंद हो जाता है। जब दवाओं का असर ख़तम हो जाता है तब सर्जरी की सलाह दी जाती है। लैप्रोस्कोपी से ओवेरी में अंडाशय और बाकि के अंगों के आसपास जमे खून को साफ़ कर दिया जाता है बिना किसी अंगों को नुकसान पहुँचाय । इससे दर्द से राहत मिलती है और और मरीज के माँ बनने के संभावना बढ़ जाती है।
एंडोमिट्रियोसिस मरीज क्या करे ----- एंडोमिट्रियोसिस में मरीज को तेज दर्द होता है। दर्द निवारक गोलियों से भी आराम नहीं मिलता है। रेक्टम में तेज दर्द होता है जिससे मल त्यागने में परेशानी होती है। इस तरह के दर्द से निपटने के लिए सुरक्षित दवाएँ और टीका उपलब्ध है जो दो से तीन साल तक इससे बचाव करता है। यदि पाँच सेंटीमीटर से बड़ा एदोमीट्रियोसिस है लैप्रोस्कोपीक सर्जरी ही उपाय है। यदि महिला की उम्र ज्यादा हो तो यूट्रस और ओवेरी को पूरी तरह से बाहर निकल देना चाहिए। ये ही अंत में समाधान है इस बीमारी का।
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